राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968: एक विस्तृत विश्लेषण
भारत की पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 (National Education Policy 1968) को भारतीय शिक्षा व्यवस्था को अधिक संगठित, समान और आधुनिक बनाने के उद्देश्य से लागू किया गया था। यह नीति कोठारी आयोग (1964-66) की सिफारिशों पर आधारित थी और इसका उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना, विज्ञान और तकनीकी शिक्षा को प्रोत्साहित करना, शिक्षकों की स्थिति सुधारना और शिक्षा को समाज के सभी वर्गों तक पहुँचाना था।
इस नीति की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएँ थीं, जैसे त्रिभाषा सूत्र (Three Language Formula), प्राथमिक शिक्षा को सार्वभौमिक बनाना, विज्ञान और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना और अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के लिए विशेष योजनाएँ लागू करना। हालाँकि, इस नीति को पूर्ण रूप से सफल बनाने में कई चुनौतियाँ भी सामने आईं, जैसे शिक्षा के लिए पर्याप्त बजट न होना और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता में असमानता बने रहना।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 की पृष्ठभूमि
स्वतंत्रता के बाद भारत में शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने की आवश्यकता महसूस की गई। ब्रिटिश शासन के दौरान लागू शिक्षा प्रणाली केवल एक सीमित वर्ग तक ही सीमित थी, जिससे अशिक्षा दर अधिक बनी हुई थी। भारत सरकार ने 1964 में डॉ. दैशबोध कोठारी की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया, जिसे कोठारी आयोग (Kothari Commission) कहा जाता है।
कोठारी आयोग की प्रमुख सिफारिशें
कोठारी आयोग ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को सुधारने के लिए कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए, जिनमें शामिल हैं:
- सभी के लिए शिक्षा – समाज के सभी वर्गों के लिए शिक्षा को सुलभ और समान बनाना।
- शिक्षा के लिए GDP का 6% खर्च – सरकार को शिक्षा पर अधिक बजट आवंटित करने की सिफारिश की गई।
- भाषा नीति – शिक्षा में मातृभाषा, हिंदी और अंग्रेजी का संतुलन बनाए रखना।
- शिक्षकों की गुणवत्ता में सुधार – शिक्षकों को उचित वेतन और प्रशिक्षण प्रदान करना।
- तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा – विज्ञान और तकनीकी शिक्षा को आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार बनाना।
इन सिफारिशों के आधार पर, सरकार ने 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 1968) लागू की।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के प्रमुख उद्देश्य
शिक्षा को समान और सर्वसुलभ बनाना
- सभी नागरिकों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और महिलाओं को समान शिक्षा के अवसर प्रदान करना।
- बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विशेष योजनाएँ लागू करना।
प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाना
- 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने की नीति अपनाई गई।
- स्कूलों में सुविधाओं को बढ़ाने पर जोर दिया गया।
त्रिभाषा सूत्र (Three Language Formula) को लागू करना
- प्रत्येक छात्र को तीन भाषाएँ सीखनी थीं:
- मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा
- हिंदी (राष्ट्रीय स्तर पर संपर्क भाषा के रूप में)
- अंग्रेजी (अंतर्राष्ट्रीय और वैज्ञानिक भाषा के रूप में)
- प्रत्येक छात्र को तीन भाषाएँ सीखनी थीं:
शिक्षकों की स्थिति सुधारना
- शिक्षकों को अधिक वेतन और प्रशिक्षण प्रदान करना।
- उनके सामाजिक और आर्थिक स्तर को ऊँचा उठाने के लिए योजनाएँ बनाना।
विज्ञान और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना
- विज्ञान, गणित और तकनीकी शिक्षा को प्राथमिकता देना।
- अनुसंधान और उच्च शिक्षा को बेहतर बनाना।
महिला शिक्षा को विशेष महत्व देना
- लड़कियों के लिए विशेष योजनाएँ लागू करना।
- छात्रवृत्ति, मुफ्त किताबें और अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
सामाजिक और नैतिक शिक्षा पर जोर देना
- शिक्षा में नैतिक मूल्यों को शामिल करना।
- भारतीय संस्कृति और परंपराओं को बनाए रखना।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 की मुख्य विशेषताएँ
1. त्रिभाषा सूत्र (Three Language Formula)
इस नीति के तहत, भारत के सभी स्कूलों में छात्रों को तीन भाषाएँ सिखाई जानी थीं।
- उत्तर भारत के राज्यों में: हिंदी, अंग्रेजी, और एक अन्य भारतीय भाषा (जैसे तमिल, बंगाली, आदि)।
- दक्षिण भारत के राज्यों में: उनकी क्षेत्रीय भाषा, हिंदी और अंग्रेजी।
2. प्राथमिक शिक्षा को सार्वभौमिक बनाना
- 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को शिक्षा देना अनिवार्य किया गया।
- गरीब और वंचित वर्गों को मुफ्त शिक्षा उपलब्ध कराई गई।
3. शिक्षा के लिए अधिक बजट
- सरकार को शिक्षा पर GDP का 6% खर्च करने की सिफारिश की गई।
4. शिक्षकों की स्थिति में सुधार
- शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को मजबूत करना।
- उनके वेतन और सेवा शर्तों को बेहतर बनाना।
5. व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा
- विज्ञान, गणित और तकनीकी शिक्षा को अधिक महत्व दिया गया।
- अनुसंधान संस्थानों को अधिक संसाधन दिए गए।
6. महिला शिक्षा पर विशेष ध्यान
- लड़कियों की शिक्षा को प्राथमिकता दी गई।
- महिला शिक्षकों की संख्या बढ़ाने की योजना बनाई गई।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 का प्रभाव
सकारात्मक प्रभाव
✅ साक्षरता दर में सुधार हुआ।
✅ विज्ञान और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा मिला।
✅ शिक्षकों की स्थिति बेहतर हुई।
✅ अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए शिक्षा अधिक सुलभ हुई।
सीमाएँ और चुनौतियाँ
❌ सरकार GDP का 6% शिक्षा पर खर्च नहीं कर पाई।
❌ ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता अभी भी कमजोर बनी रही।
❌ त्रिभाषा सूत्र को सभी राज्यों में समान रूप से लागू नहीं किया गया।
निष्कर्ष
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार लाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था। यह नीति शिक्षा को समाज के सभी वर्गों तक पहुँचाने, विज्ञान और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने, शिक्षकों की स्थिति सुधारने और महिला शिक्षा को प्राथमिकता देने के उद्देश्यों पर आधारित थी। हालाँकि, वित्तीय और प्रशासनिक कारणों से यह नीति पूरी तरह सफल नहीं हो सकी।
इसके बाद, 1986 और 2020 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीतियाँ लागू की गईं, जिन्होंने शिक्षा व्यवस्था को और अधिक आधुनिक और प्रभावी बनाया।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 भारतीय शिक्षा प्रणाली के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर थी और इससे प्राप्त अनुभवों के आधार पर आगे की नीतियों का निर्माण किया गया।