भारतीय शिक्षा का दार्शनिक और समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य

शिक्षा और दर्शन के बीच संबंध

1.1 शिक्षा का अर्थ और परिभाषा

शिक्षा एक जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है जो व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, नैतिक और सामाजिक विकास में सहायक होती है। यह केवल ज्ञान प्राप्त करने तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यक्तित्व निर्माण, नैतिक मूल्यों का विकास और समाज में सामंजस्य बैठाने की प्रक्रिया भी है।

शिक्षा की प्रमुख परिभाषाएँ

  1. स्वामी विवेकानंद
    “शिक्षा वह है जो पहले से ही मनुष्य में विद्यमान पूर्णता को प्रकट करती है।”
  2. महात्मा गांधी
    “शिक्षा से मेरा तात्पर्य शरीर, मन और आत्मा के सर्वोत्तम विकास से है।”
  3. प्लेटो
    “शिक्षा आत्मा को अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाने की प्रक्रिया है।”
  4. अरस्तू
    “शिक्षा स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण करती है।”
  5. जॉन ड्यूवी
    “शिक्षा वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति को अपने वातावरण के अनुसार ढालने और उसमें परिवर्तन करने में सक्षम बनाती है।”

निष्कर्ष: शिक्षा का उद्देश्य केवल सूचना देना नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के संपूर्ण विकास को सुनिश्चित करने की प्रक्रिया है।


1.2 शिक्षा का व्यापक और संकीर्ण अर्थ

1️⃣ व्यापक अर्थ

  • शिक्षा जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया है।
  • यह औपचारिक (Formal), अनौपचारिक (Informal) और गैर-औपचारिक (Non-formal) तीनों रूपों में होती है।
  • शिक्षा केवल विद्यालय तक सीमित नहीं है, बल्कि परिवार, समाज, अनुभव, परंपराओं और संस्कृति से भी प्राप्त होती है।
  • इसमें व्यक्तिगत विकास, नैतिकता, मूल्य, कला, व्यवहार और समाज के प्रति कर्तव्य शामिल होते हैं।
  • व्यक्ति अपने परिवेश और अनुभवों से लगातार सीखता रहता है, यही व्यापक शिक्षा का मुख्य पहलू है।

उदाहरण: माता-पिता से जीवन मूल्य सीखना, सामाजिक परिस्थितियों से सीखना, किसी गलती से सीखकर उसे दोबारा न दोहराना।

2️⃣ संकीर्ण अर्थ

  • शिक्षा को केवल विद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में दी जाने वाली शिक्षा तक सीमित माना जाता है।
  • यह एक संगठित, संरचित और पाठ्यक्रम आधारित प्रक्रिया होती है।
  • इसमें परीक्षा, ग्रेड और प्रमाण पत्र आधारित शिक्षा प्रणाली होती है।
  • इस दृष्टिकोण में शिक्षा को मात्र एक औपचारिक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है, जिसमें छात्र कक्षाओं में शिक्षक से सीखते हैं।

उदाहरण: स्कूल और कॉलेज में दी जाने वाली शिक्षा।

निष्कर्ष: शिक्षा केवल विद्यालय में प्राप्त होने वाली प्रक्रिया तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक समाज द्वारा संचालित और जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया है।


1.3 शिक्षा का स्वरूप और विशेषताएँ

शिक्षा की विशेषताएँ

  1. सामाजिक प्रक्रिया – शिक्षा समाज में व्यक्ति के उचित विकास में सहायक होती है।
  2. सतत प्रक्रिया – जन्म से मृत्यु तक चलने वाली प्रक्रिया।
  3. गतिशील प्रक्रिया – शिक्षा समय के अनुसार परिवर्तित होती रहती है।
  4. व्यक्तिगत भिन्नताओं पर आधारित – प्रत्येक व्यक्ति की सीखने की क्षमता अलग-अलग होती है।
  5. औपचारिक और अनौपचारिक रूप – शिक्षा विद्यालयों, परिवार, समाज और अनुभवों से प्राप्त की जा सकती है।
  6. विकासोन्मुखी प्रक्रिया – शिक्षा ज्ञान, कौशल और नैतिकता को बढ़ाती है।
  7. समायोजन की प्रक्रिया – शिक्षा व्यक्ति को बदलते परिवेश और समाज के अनुरूप ढालने में सहायता करती है।
  8. मानवीय मूल्यों को स्थापित करना – शिक्षा केवल बुद्धिमत्ता को बढ़ाने का साधन नहीं है, बल्कि यह नैतिकता, सहानुभूति और जिम्मेदारी की भावना भी विकसित करती है।

निष्कर्ष: शिक्षा एक निरंतर विकसित होने वाली प्रक्रिया है जो व्यक्ति को समाज का उपयोगी नागरिक बनाने में मदद करती है


1.4 शिक्षा और दर्शन का संबंध

  1. शिक्षा के उद्देश्यों को निर्धारित करता है – शिक्षा किस दिशा में जानी चाहिए, यह दर्शन पर निर्भर करता है।
  2. शिक्षा की विधियों को प्रभावित करता है – आदर्शवाद नैतिकता पर जोर देता है, जबकि प्रयोगवाद अनुभव आधारित शिक्षा को बढ़ावा देता है।
  3. शिक्षा और पाठ्यक्रम का निर्धारण – दर्शन यह तय करता है कि कौन-से विषय पढ़ाए जाएँ।
  4. शिक्षा को जीवन से जोड़ता है – दर्शन यह सुनिश्चित करता है कि शिक्षा जीवन के वास्तविक उद्देश्यों को पूरा करे।
  5. शिक्षक की भूमिका को परिभाषित करता है – शिक्षा में शिक्षक को किस प्रकार से ज्ञान प्रदान करना चाहिए, यह दर्शन तय करता है।
  6. समाज के विकास में योगदान – शिक्षा और दर्शन मिलकर सामाजिक सुधार और उन्नति में सहायक होते हैं।

उदाहरण:

  • गांधी जी की ‘नई तालीम’ शिक्षा प्रणाली आत्मनिर्भरता और व्यावहारिक शिक्षा पर आधारित थी।
  • विवेकानंद का शिक्षा दर्शन चरित्र निर्माण और आत्मोन्नति पर आधारित था।

निष्कर्ष: दर्शन शिक्षा को दिशा और आधार प्रदान करता है, जबकि शिक्षा दार्शनिक विचारों को व्यवहार में लागू करती है

भारतीय और पश्चिमी दर्शन में अंतर

भारतीय दर्शनपश्चिमी दर्शन
आत्मा, मोक्ष और कर्म पर आधारितवैज्ञानिक तर्क और विश्लेषण पर आधारित
आध्यात्मिक और नैतिक विकास को प्राथमिकताभौतिक उन्नति और मानव प्रगति पर जोर
वेदांत, सांख्य, बौद्ध, जैन, इस्लामिक विचारधाराआदर्शवाद, यथार्थवाद, प्रयोगवाद, अस्तित्ववाद
आत्मा और परमात्मा के संबंधों पर बलमानवता और समाज के सुधार पर केंद्रित

1.5 निष्कर्ष

✅ शिक्षा और दर्शन एक-दूसरे के पूरक हैं।
✅ दर्शन शिक्षा को लक्ष्य और मार्ग प्रदान करता है।
✅ शिक्षा दर्शन को व्यवहारिक रूप देने का कार्य करती है।
✅ शिक्षा व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास और सामाजिक सुधार का प्रमुख माध्यम है।
✅ शिक्षा को प्रभावी बनाने के लिए यह आवश्यक है कि उसे समाज की आवश्यकताओं और दार्शनिक सिद्धांतों के अनुसार विकसित किया जाए।

शिक्षा में दर्शनशास्त्र के अध्ययन का महत्त्व

2.1 प्रस्तावना (Introduction)

शिक्षा और दर्शन का गहरा संबंध है। शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा समाज अपने ज्ञान, संस्कृति और मूल्यों को अगली पीढ़ी तक पहुँचाता है। दर्शनशास्त्र शिक्षा को एक दिशा और आधार प्रदान करता है, जिससे शिक्षा का उद्देश्य स्पष्ट होता है। शिक्षा का मूल कार्य व्यक्ति के समग्र विकास को सुनिश्चित करना है, और यह कार्य दर्शन के मार्गदर्शन में ही संभव है।

दर्शन यह तय करता है कि शिक्षा का स्वरूप, उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियाँ, मूल्य-आधारित शिक्षा और शिक्षक की भूमिका कैसी होनी चाहिए

उदाहरण:

  • यदि शिक्षा का उद्देश्य नैतिकता और चरित्र निर्माण है, तो इसे आदर्शवाद से प्रेरित किया जाएगा।
  • यदि शिक्षा का उद्देश्य व्यावहारिक ज्ञान और समस्या समाधान है, तो इसे प्रयोगवाद से दिशा मिलेगी।
  • यदि शिक्षा समाज को बदलने का एक साधन है, तो इसे मार्क्सवाद और समाजवादी दर्शन से जोड़ा जाएगा।

निष्कर्ष: शिक्षा और दर्शन एक-दूसरे के पूरक हैं। दर्शन के बिना शिक्षा दिशाहीन हो जाएगी, और शिक्षा के बिना दर्शन केवल एक सैद्धांतिक अध्ययन बनकर रह जाएगा।


2.2 शिक्षा में दर्शनशास्त्र के अध्ययन की आवश्यकता

(1) शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण

  • शिक्षा केवल सूचना देने का साधन नहीं है, बल्कि यह मानवीय मूल्यों और चरित्र निर्माण का एक महत्वपूर्ण उपकरण है।
  • दर्शन यह तय करता है कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाना, नैतिक मूल्यों को विकसित करना, वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना और समाज की सेवा के लिए तैयार करना होना चाहिए।

उदाहरण: गांधी जी की नई तालीम (Nai Talim) शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य व्यावहारिकता और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना था।

(2) पाठ्यक्रम (Curriculum) का निर्माण

  • शिक्षा में पढ़ाए जाने वाले विषय और उनका चुनाव दर्शन पर निर्भर करता है।
  • आदर्शवाद दर्शन में दर्शनशास्त्र, साहित्य, कला, धर्म और नैतिकता को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
  • यथार्थवाद (Realism) में विज्ञान, गणित और तर्कशास्त्र को अधिक स्थान दिया जाता है।
  • प्रयोगवाद (Pragmatism) में अनुभव-आधारित शिक्षा को प्राथमिकता दी जाती है।

उदाहरण: आधुनिक शिक्षा प्रणाली में STEM (Science, Technology, Engineering, Mathematics) आधारित पाठ्यक्रम यथार्थवादी दर्शन पर आधारित है।

(3) शिक्षक की भूमिका

  • शिक्षा में शिक्षक केवल सूचना देने वाला व्यक्ति नहीं होता, बल्कि वह एक मार्गदर्शक, दार्शनिक और प्रेरणास्त्रोत होता है।
  • दर्शनशास्त्र शिक्षक को यह सिखाता है कि उसे विद्यार्थियों के साथ सहानुभूति, संवेदनशीलता और नैतिक मूल्यों के साथ व्यवहार करना चाहिए।

उदाहरण: प्लेटो की पुस्तक “The Republic” में शिक्षक को समाज के लिए मॉरल गाइड (Moral Guide) माना गया है।

(4) शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods)

  • शिक्षण विधियों का निर्धारण भी दार्शनिक विचारधारा के आधार पर किया जाता है।
  • आदर्शवाद शिक्षा में व्याख्यान (Lecture), अनुकरण (Imitation), और नैतिक शिक्षा को प्राथमिकता दी जाती है।
  • यथार्थवाद शिक्षा में प्रयोगशाला (Laboratory), अवलोकन (Observation) और वैज्ञानिक विश्लेषण को महत्त्व दिया जाता है।
  • प्रयोगवाद में ‘Learn by Doing’ (करके सीखना) को अपनाया जाता है।

उदाहरण: जॉन ड्यूवी (John Dewey) के अनुसार, शिक्षा को केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि बच्चों को अनुभव और प्रयोगों के माध्यम से सीखने देना चाहिए।

(5) सामाजिक परिवर्तन और शिक्षा

  • दर्शनशास्त्र यह सुनिश्चित करता है कि शिक्षा केवल ज्ञान अर्जन का साधन न रहे, बल्कि सामाजिक बदलाव लाने का एक उपकरण बने।
  • शिक्षा का उपयोग गरीबी, अशिक्षा, भेदभाव और अंधविश्वास को दूर करने में किया जाना चाहिए।

उदाहरण:

  • रवींद्रनाथ टैगोर की शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य रचनात्मकता और आत्म-अभिव्यक्ति को बढ़ावा देना था।
  • अंबेडकर ने शिक्षा को दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए सशक्तिकरण का साधन बताया।

2.3 शिक्षा और प्रमुख दार्शनिक विचारधाराएँ

1️⃣ आदर्शवाद (Idealism) और शिक्षा

मुख्य विशेषताएँ

  • आदर्शवाद के अनुसार सत्य, नैतिकता और आध्यात्मिकता शिक्षा के मुख्य लक्ष्य होने चाहिए।
  • यह शिक्षा को संस्कार, अनुशासन और नैतिकता से जोड़ता है।

शिक्षा में प्रभाव

  • नैतिक शिक्षा पर बल।
  • शिक्षक को अनुकरणीय आदर्श माना जाता है।
  • धार्मिक, नैतिक और दार्शनिक अध्ययन को पाठ्यक्रम में महत्त्व दिया जाता है।

महत्वपूर्ण विचारक: प्लेटो, स्वामी विवेकानंद।


2️⃣ यथार्थवाद (Realism) और शिक्षा

मुख्य विशेषताएँ

  • यथार्थवाद के अनुसार शिक्षा को व्यावहारिक और तर्कसंगत ज्ञान पर आधारित होना चाहिए।
  • अनुभव और पर्यवेक्षण (Observation) को प्राथमिकता दी जाती है।

शिक्षा में प्रभाव

  • विज्ञान और गणित को महत्त्व।
  • प्रयोगशाला और प्रायोगिक शिक्षण।
  • तर्कशीलता और तथ्य-आधारित अध्ययन।

महत्वपूर्ण विचारक: अरस्तू, बेकन, लॉक।


3️⃣ प्रयोगवाद (Pragmatism) और शिक्षा

मुख्य विशेषताएँ

  • शिक्षा को अनुभव और प्रयोग के आधार पर विकसित किया जाना चाहिए।
  • शिक्षा का उद्देश्य समस्या-समाधान और व्यावहारिकता होना चाहिए।

शिक्षा में प्रभाव

  • “करके सीखना” (Learning by Doing)
  • समूह चर्चा, प्रयोगशाला और अनुसंधान पर जोर
  • शिक्षक को मार्गदर्शक की भूमिका में देखना

महत्वपूर्ण विचारक: जॉन ड्यूवी।


4️⃣ मानवतावाद (Humanism) और शिक्षा

मुख्य विशेषताएँ

  • शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के व्यक्तिगत और भावनात्मक विकास को सुनिश्चित करना है।
  • प्राकृतिक सीखने के माहौल पर बल दिया जाता है।

शिक्षा में प्रभाव

  • शिक्षक को मित्र, प्रेरणास्रोत और सहायक के रूप में देखा जाता है।
  • बच्चों को स्वतंत्र सोचने और निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया जाता है।

महत्वपूर्ण विचारक: मारिया मोंटेसरी, कार्ल रोजर्स।


2.4 निष्कर्ष

✅ शिक्षा और दर्शन एक-दूसरे के पूरक हैं।
✅ शिक्षा को एक नैतिक, सामाजिक, वैज्ञानिक और व्यावहारिक आधार देने के लिए दर्शनशास्त्र का अध्ययन अनिवार्य है।
✅ एक सशक्त समाज के निर्माण के लिए शिक्षा को दर्शन के साथ संतुलित रूप से जोड़ा जाना चाहिए।

शिक्षा के कार्य (Functions of Education)

3.1 प्रस्तावना (Introduction)

शिक्षा केवल ज्ञान अर्जन की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति और समाज के विकास का सबसे महत्वपूर्ण साधन है। शिक्षा का उद्देश्य केवल पढ़ने-लिखने तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह व्यक्ति के चारित्रिक, नैतिक, बौद्धिक, सामाजिक और व्यावसायिक विकास में सहायक होती है।

शिक्षा का व्यापक प्रभाव

व्यक्तिगत स्तर पर – शिक्षा से व्यक्ति को स्वतंत्र सोचने, निर्णय लेने, समस्या समाधान करने, सामाजिकता अपनाने और आत्मनिर्भर बनने में सहायता मिलती है।
सामाजिक स्तर पर – शिक्षा सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने, सामाजिक समरसता लाने और समाज में समानता स्थापित करने में मदद करती है।
आर्थिक स्तर पर – शिक्षा रोजगार योग्य कौशल विकसित कर आर्थिक आत्मनिर्भरता प्रदान करती है, जिससे राष्ट्र की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होती है।

निष्कर्ष: शिक्षा केवल सूचना देने का साधन नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति और समाज के संपूर्ण विकास की प्रक्रिया है।


3.2 शिक्षा के व्यक्तिगत (Individual) कार्य

शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के बौद्धिक, नैतिक, चारित्रिक, शारीरिक और व्यावसायिक विकास को सुनिश्चित करना है।

(1) बौद्धिक विकास (Intellectual Development)

बुद्धि (Intellect) व्यक्ति का सबसे महत्वपूर्ण गुण है, और शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बुद्धि का विकास करना होता है।
✅ शिक्षा से व्यक्ति को तर्कशीलता (Rationality), विश्लेषणात्मक सोच (Analytical Thinking), रचनात्मकता (Creativity) और निर्णय लेने की क्षमता (Decision Making Ability) प्राप्त होती है।
✅ यह ज्ञान प्राप्त करने, समस्या समाधान करने और नवाचार (Innovation) को बढ़ावा देने में सहायक होती है।

📌 व्यावहारिक उदाहरण:

  • गणित (Mathematics) का अध्ययन तार्किक सोच और समस्या समाधान की क्षमता बढ़ाता है।
  • विज्ञान (Science) से व्यक्ति में प्रयोग करने और नए अविष्कार करने की प्रवृत्ति विकसित होती है।

निष्कर्ष: शिक्षा व्यक्ति को केवल जानकारी ही नहीं देती, बल्कि उसे स्वतंत्र विचारक और निर्णय लेने वाला सक्षम नागरिक बनाती है।


(2) नैतिक और चारित्रिक विकास (Moral and Character Development)

शिक्षा व्यक्ति को सत्य, अहिंसा, करुणा, अनुशासन, न्याय, निष्ठा और ईमानदारी जैसे नैतिक मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है।

शिक्षा के माध्यम से नैतिकता के विकास के उपाय

  • विद्यालयों में नैतिक शिक्षा (Moral Education) अनिवार्य की जाती है।
  • शिक्षक छात्रों को ईमानदारी, सहयोग, और सामाजिक उत्तरदायित्व की शिक्षा देते हैं।
  • धार्मिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा से सहानुभूति और दयालुता की भावना विकसित होती है।

📌 व्यावहारिक उदाहरण:

  • स्कूलों में पंचायती व्यवस्था लागू कर छात्रों को सत्यनिष्ठा और न्यायप्रियता का पाठ पढ़ाया जाता है।
  • नैतिक शिक्षा (Moral Science) के पाठ्यक्रम में महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद और डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के विचारों को शामिल किया जाता है।

निष्कर्ष: नैतिकता और चरित्र निर्माण शिक्षा के सबसे महत्वपूर्ण कार्य हैं, क्योंकि एक नैतिक व्यक्ति ही एक बेहतर समाज और राष्ट्र के निर्माण में योगदान दे सकता है।


(3) शारीरिक और मानसिक विकास (Physical and Mental Development)

शिक्षा केवल मानसिक और बौद्धिक विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है।

शारीरिक विकास के उपाय

  • स्कूलों में खेल-कूद (Sports), योग (Yoga) और व्यायाम (Exercise) को अनिवार्य बनाया जाता है।
  • संतुलित आहार (Balanced Diet) और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी दी जाती है।

मानसिक स्वास्थ्य के उपाय

  • ध्यान (Meditation) और तनाव प्रबंधन (Stress Management) की तकनीकों को सिखाया जाता है।
  • छात्रों में आत्म-विश्वास (Self-confidence) और आत्म-सम्मान (Self-respect) विकसित करने पर जोर दिया जाता है।

📌 व्यावहारिक उदाहरण:

  • स्कूलों में योग कक्षाएं संचालित कर बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जाता है।
  • खेल-कूद से टीम वर्क, नेतृत्व क्षमता और अनुशासन का विकास होता है।

निष्कर्ष: शिक्षा के माध्यम से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत बनाकर व्यक्ति को एक संपूर्ण और संतुलित जीवन जीने योग्य बनाया जाता है।


(4) व्यावसायिक और आर्थिक विकास (Vocational and Economic Development)

✅ शिक्षा व्यक्ति को रोजगार के लिए आवश्यक कौशल (Skills) विकसित करने में मदद करती है।
✅ यह व्यक्ति को स्वावलंबी (Self-dependent) और आत्मनिर्भर (Self-reliant) बनाकर आर्थिक रूप से सक्षम बनाती है।
✅ तकनीकी शिक्षा (Technical Education) और व्यावसायिक पाठ्यक्रम (Vocational Courses) से व्यक्ति को रोजगार प्राप्त करने और उद्यमशीलता (Entrepreneurship) विकसित करने में सहायता मिलती है।

📌 व्यावहारिक उदाहरण:

  • आईटीआई (ITI), पॉलिटेक्निक और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम रोजगार के अवसर बढ़ाते हैं।
  • कौशल विकास (Skill Development) कार्यक्रम से युवा बेरोजगारी की समस्या को हल कर सकते हैं।

निष्कर्ष: शिक्षा केवल रोजगार पाने का साधन नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति को आर्थिक रूप से स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाने का माध्यम भी है।


3.3 निष्कर्ष (Conclusion)

✅ शिक्षा का कार्य केवल व्यक्ति को साक्षर बनाना नहीं है, बल्कि यह व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक विकास का भी साधन है।
✅ शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र निर्माण, सामाजिक समरसता और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दिया जाता है।
✅ शिक्षा का सही उपयोग समानता, स्वतंत्रता और सतत विकास को सुनिश्चित कर सकता है।


💡 समापन टिप्पणी (Final Thoughts)

शिक्षा का कार्य केवल विद्यालय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया है।
✅ शिक्षा का उद्देश्य केवल परीक्षाओं में अच्छे अंक लाना नहीं होना चाहिए, बल्कि यह व्यक्ति को एक अच्छा नागरिक, एक अच्छा इंसान और एक अच्छा कार्यकर्ता बनाने का कार्य करती है।
✅ शिक्षा केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि यह व्यावहारिकता, नैतिकता, समाजोपयोगिता और नवाचार को बढ़ावा देने वाली होनी चाहिए।

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